Sunday 7 April 2019

वो कौन है?

जाने कौन
रोज़ चुपके से जगा जाता है
सूरज को
भर जाता है जग में उजाला
दे जाता है तपिश
और फ़िर दूर क्षितिज पर
तलहटी में उतर जाता है
डूब जात हैअंधेरे में
एक बार फिर सबकुछ
जाने कहाँ से उमड़ आते हैं
असंख्य टिमटिमाते तारे
शरारत करने को लालायित जैसे हों
नटखट बच्चे
नमूंदार होता है
पहरेदार सा फिर
अम्बर में चंचल चंदा
अनंत किरणों से अपनी जो
बुनता है सफ़ेद चादर
ओढ़नी की तरह जो बिछ जाती है
जल थल में
जाने कौन खींच जाता है
पानी को नभ में और
भर देता है बूंदों को
बादलों की सुराहियों में
उंडेल देता है इन्हें वापिस
धरती पर
उभर आता है शून्य में
सतरंगी इंद्रधनुष
चल निकलते है झरने
लिए मधुर संगीत
अलसाती धरती से
अंकुरित हो फ़ूट पड़्ते हैं
सुषुप्त बीज
और निकल आती हैं
नन्हीं कोंपलें
पीले सरसों से
लहलहा उठते हैं खेत
जंगल मैदान घाटियां पहाड़
सब हो जाते हैं हरे भरे
लद जाती तब धरा
रंग बिरंगे खिले फूलों से
महका जाता है तब कौन
फ़िज़ाओं को खुशबुओं से
परिंदों को दे जाता है कोई
हुनर घरोंदे बनाने का
पर और परों से उड़ना
सीखा जाता है कौन
जाने कौन दे जाता है
पंछियों को सुर
आखिर कौन छुप कर चलता है
ये सब चालें
खेलता है कौन हमसे
धूप-छाँव का ये खेल
आखिर कौन हम से करता है
ये अठखेलियां

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