तालिमी माहौल
अज़ब ये तालीम की सबा हई, खलल है अजब
तालिब बन रहे उस्ताद, उस्ताद हो रहे तलब
तालिब बन रहे उस्ताद, उस्ताद हो रहे तलब
न मुर्शीद हैं संजीदा, ना शागिर्दों में है अदब
न इन्हें कुछ ख्याल, न वो जाने इलम का सबब
न इन्हें कुछ ख्याल, न वो जाने इलम का सबब
फर्ज हो रहा फ़ना माफिया-ए-नकल हो रहा जवां,
नाकाबिल पा रहे एज़ाज़, अदीब हो रहे परेशां
नाकाबिल पा रहे एज़ाज़, अदीब हो रहे परेशां
दौड़ती हैं यहां बैसाखियां, पाते हैं ऊंचाई-ए-आसमां
पिछड़ते हैंं मेहनतकश हाथ, गिरते हैं काबिल जवां
पिछड़ते हैंं मेहनतकश हाथ, गिरते हैं काबिल जवां
कुछ सियासी हैं मेहरबानियां, कुछ वालेदेन की है गफ़लत
कुछ उस्ताद हो गए गाफिल, कुछ शागिर्दो में नहीं हसरत
कुछ उस्ताद हो गए गाफिल, कुछ शागिर्दो में नहीं हसरत
मशवरे आलाओं के नहीं सादिक, ईरादों में भी नहीं दम
सियासी चालें चल रहे सब, उस्ताद रह गए कम
सियासी चालें चल रहे सब, उस्ताद रह गए कम
तालीम से होते जा रहे दूर जुर्म के आ रहे और करीब
कैसा है ये तालीमी माहौल कैसा तालिबों का नसीब
कैसा है ये तालीमी माहौल कैसा तालिबों का नसीब
देखो ! वो डूबती है कश्ती तालीम की, संभालो या रब !
वो गर्क होता है मुस्तकबिल वतन का संभालो या रब !
वो गर्क होता है मुस्तकबिल वतन का संभालो या रब !
छोड ! तू ही फ़िक्र क्यों करता है ’बाली’ जहां की,
क्यों लेता है दर्द जमाने का
डूबती है तो डूबने दे
गर फ़िक्र न मल्लाह को है न मुसाफ़िर को डूबने का
-------जगदीश बाली
क्यों लेता है दर्द जमाने का
डूबती है तो डूबने दे
गर फ़िक्र न मल्लाह को है न मुसाफ़िर को डूबने का
-------जगदीश बाली