Friday 23 September 2016

वसुधैव कुटुम्बकम

          इंसान क्या था क्या हो गया, कोई हिंदु, कोई मुसलमान हो गया - जब मनुष्य का जन्म होता है, तो वह ‘अल्ला हू अकबर‘ या ‘हर हर महादेव‘ का सिंहनाद करते हुए इस दुनिया में अवतरित नहीं होता। किसी पर भी ये ठप्पा नहीं लगा होता कि अमूक व्यक्ति हिंदू, मुसलमान, सिक्ख या ईसाई होगा। कोई इस तरह की चिप्पी भी नहीं लगी होती कि ये गोरा, ये काला, ये सांवला, ये निम्न जात का, ये ऊंची जात का। ख़ुदा ने तो इंसान पैदा किया है और वो भी एकदम बराबर, परन्तु वो खुद ही बंट गया - कोई बन गया हिंदू, कोई सिक्ख, कोई मुसलमान, कोई ईसाई, कोई ढीमका, कोई फ़्लां। हम इस संसार में उसके बंदे के रूप में आते हैं। मानव की एक ही जात है - इंसानियत और एक ही मज़हब है - मोहब्बत।
          गांधी जी ने कहा है - आंख के बदले आंख एक दिन विश्व को अंधा बना देगा। साबरमती के इस संत ने दया, सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए देश को बिना खड़ग और ढाल आज़ादी दिलाने का बीड़ा उठाया था और पूरे विश्व को मानवता का संदेश दिया था। भले ही ब्रिटिश प्रधान मंत्री, विन्सटन चर्चिल, ने गांधी जी को कटाक्ष करते हुए ’नंगा फ़कीर’ कहा था, परन्तु इसी नंगे फ़कीर को आज सारा विश्व सहस्राब्दी पुरूष और महात्मा के रूप में शीष नवाता हैं। ऐसा नहीं था कि वे कुर्ता नहीं खरीद सकते थे, मगर कुर्ता न पहन कर उन्होंने मानव को परस्पर दया, संवेदना, प्रेम और सहानुभूति का संदेश दिया था। उन्होंने मानव समाज को अहिंसा को अपनी जीवनशैली बनाने के लिए प्रेरित किया।
          आज के वैमनस्व, नफ़रत, हिंसा और कत्लेआम के दौर में उनका संदेश और भी अहम हो जाता है क्योंकि धर्म, जाति, रंग के आधार पर इतना खून बहा है कि भविष्य हमें कभी माफ़ नहीं करेगा। कहीं कोई लहु के चंद कतरों के लिए तरसता है. तो कहीं वही लहू ख़ुदा के नाम पर सड़कों पर बह रह होता है। कहा जा सकता है:
नफ़रतों का असर देखो जानवरों का बंटवारा हो गया,
गाय हिन्दू हो गई और बकरा मुसलमान हो गया 
                   
          ऐसा नहीं होता कि सूर्य की किरणें किसी पर मधम और किसी पर तेज़ पड़ती हैं और वर्षा की बूंदें किसी पर बरसती हैं और किसी को अछूता रख देती है। चांद का कोई मज़हब नहीं, ईद भी उसकी मनाई जाती है और करवा चौथ भी। रिलायंस हो या वोडाफ़ोन, कोई ऐसा नेटवर्क नहीं जो गोरे रंग वालों को बढ़िया और काले रंग वालों को घटिया सिगनल देते हैं या हिंदूओं के लिए बढ़िया चलते हैं और मुसलमानों के लिए रुक जाते हैं। काले का ख़ून भी लाल, गोरे का खून भी लाल; हिंदू का खून भी लाल, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई का खून भी लाल। न हमें ख़ुदा ने बांटा, न हमें प्रकृति ने बांटा, फ़िर इंसान ने इंसान क्यों बांट रखा है? संत कबीर कहते हैं:
अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत दे सब बन्दे,
एक नूर ते सब जग उपज्या कौन भले कौ मंदे
          उर्दू शायर इकबाल ने बहुत ख़ूब कहा है - मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना सद्भाव सभ्यताओं को जोड़ता है, राष्ट्र को बनाता है। जाति, वर्ण, रंग, धर्म, कोई भी हो, वो एक दूसरे से न निम्न हैं, न एक दूसरे से ऊपर। धर्मवाद, रंगवाद, जातिवाद ऐसी बिमारियां है जो केवल मानव को बांटती हैं और सभ्यताओं को विनाश की ओर ले जाती हैं। किसी को ये हक नहीं कि वह जाति, धर्म और रंग के आधार पर किसी का हक छीनें, किसी को अपमानित करे और किसी का कत्ल करे। ये सभी धर्मों के उसुलों के विरुद्ध है। न धर्म टकराते हैं, न जाति, न रंग। टकराती तो वहशत है, टकराती तो संगदिली है। यदि मौहब्ब्त का उद्घोष करेंगे, तो संसार मोहब्बत की रोशनी से जगमगा उठेगा। यदि घृणा का उद्घोष करोगे, तो सारा संसार नफ़रत के अंधेरे में डूब जाएगा। हम इस दुनिया को प्यार-मौहब्बत से एक अचछी जगह बनाने आए हैं। वहशत और दहशत फ़ैलाने वालों का कोई धर्म नही होता। वे न कुरान के हैं, गीता के, गुरुग्रन्थ साहिब के, बाइबल के। वे सिर्फ़ इंसानियत के दुश्मन होते है।
          प्रत्येक मनुष्य को अपने सिद्धांतो पर चलने का अधिकार है, परन्तु समस्या तब पैदा होती है जब हम दूसरों के विश्वास व सिद्धांतों को गलत साबित करने पर तुल जाते हैं। धर्मांध हो कर हम हर दूसरों के विचारों, विश्वास को धर्म के चश्में से देखना आरंभ कर देते है। धर्म के मद में अंधे व्यक्ति को सिर्फ़ अपना ही धर्म उत्तम लगता है और दूसरों का धर्म निम्न।
          हम एक ही जड़ से उत्पन्न हुए पौधे हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कि आप जड़ से मोहब्बत करें और पेड़ से घृणा? इंद्रधनुष इसलिए सुंदर और दिलकश लगता है क्योंकि उसमें सात रंगों का अनूठा संगम है। हमारा प्रदेश, हमारा देश, हमारा संसार तभी सुंदर लगेगा अगर यहां विभिन्न, जाति, रंग और धर्म के लोग भ्रातृभाव से रहें। इस भाव को मन से निकाल दें कि दाढ़ी वाले दहशतगर्द और चॊटी वाले काफ़िर हैं।
          तो आओ! 'वसुधैव कुटुम्बकम’ और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः’ को अपने जीवन का सिद्धांत बना कर एक कल्याणकारी संसार बनाने का प्रयास करें और मार्टिन लूथर किंग के इन शब्दों को याद रखें - हमें बंधुओं की तरह रहना होगा या फ़िर धूर्तों की तरह नष्ट होना होगा।"
मैं  अमन पसंद हूँ, मेरे शहर में दंगा रहने दो
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो


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