Sunday 11 September 2016

सिमटते मानव मूल्य

जब तक इंसानियत ज़िंदा है, तब तक इन्सान ज़िंदा है। इतिहास गवाह है कि अमानवीय तौर तरीके हमेशा संसार को विनाश के गर्त की ओर ही धकेलते हैं और मानवीय मूल्यों ने ही हमेशा संसार को रोशनी दी है। वो इंसानियत का ही तकाज़ा था जिस के चलते 23 वर्षीय विमान परिचारिका नीरजा भनोत ने वीरतापूर्ण आत्मोत्सर्ग करते हुए 1996 में अपहरित विमान पैन ऍम 73 में सवार कई यात्रियों और बच्चों की ज़ान बचाई। अगर इंसानियत न होती, तो जुलाई 2016 में भोपल के कृष्णा नगर का 23 वर्षीय दीपक अपनी जान गंवा कर 20 लोगों को डूबने से न बचाता। अगर इंसानियत न होती, तो कैलाश सतयार्थी व मलाला युसुफजई नौनिहालों के बचपन को बचाने के लिए आंदोलन न करते। अगर मानवीय मूल्य ज़िंदा न होते तो महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, नैल्सन मंडेला जैसे लोग भी मज़लूम लोगों के शॊषण के विरुद्ध आवाज़ बुलंद न करते। अगर स्वार्थपूर्ण और विलासिता भरा जीवन ही सबकुछ है, तो अमेरिका के राष्ट्र्पति होते हुए अब्राहम लिंकन ईमानदारी को अपनी जीवनशैली क्यों बनाए रखते?
आज हमारी जीवनशैली इस जुमले पर काफ़ी हद तक केंद्रित हो गयी है - मुझे क्या लेना? पड़ोसी के घर में आग लगे तो लगे, मुझे क्या लेना? कोई अकेला पड़ा बिमार मरे, तो मरे, उसकी तिमारदारी क्यों करे, मुझे क्या लेना? हम भूल रहें हैं कि जिस दरख़्त के साये में आज हम धूप की तपिश से निजात पा रहे हो, कई सालों पहले उसे उगाने वाले ने ये नहीं कहा था: " "मुझे क्या लेना।" उर्दू के मारुफ़ शायर डॉ नवाज़ देवबंदी साहब साहब कहते हैं:
उसके कत्ल पे मैं भी चुप था, मेरा नंबर अब आया
मेरे कत्ल पर आप भी चुप हैं, अगला नंबर आपका है
आज़ सबसे अधिक विषादित करने वाला पहलू यह है कि संसार में ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं जो ज्ञान और जानकारियों से सराबोर हैं, परन्तु ऐसे लोगों की बहुत कमी हैं जिनमें मानव मौज़ूद है। अस्पताल में कोई तरस रहा होता है कि ख़ुदा के नाम पर उसे ख़ून के चंद कतरे मयस्सर हो जाए, उधर ख़ुदा के नाम पर सड़कों पर लोग ख़ून बहाने पर आमादा होते हैं। कोई बेचारा दुर्घटना के कारण सड़क पर तड़प रहा होता है और कोई उसका वीडिओ बना कर फ़ेसबुक पर अपलोड करने में मसरूफ़ होता है। कहीं पुलिस या अदालत आड़े-तिरछे सवाल न पूछ ले, इस डर से उसे अस्पताल पहुंचाने की कोशिश कोई-कोई ही करता है। अगर जगह कम भीड़-भाड़ वाली हो, तो कोई गिद्ध दृष्टि गड़ा कर उसका माल हड़प्पने की ताक में रहते हैं।
मानवीय मूल्य मनुष्य का ज़हनी और रुहानी गुण है। इन गुणों का विकास मनुष्य के चरित्र निर्माण के साथ किया जा सकता है। ये कार्य शिक्षा के माध्यम से बख़ूबी किया जा सकता है। दक्षिण अफ़्रीका के पहले लोकतांत्रिक राष्ट्रपति, नैल्सन मंडेला, ने कहा था, "शिक्षा सबसे ताकतवर हथियार है, जिससे विश्व को बदला जा सकता है।" अपने घर की देहलीज़ को जब बच्चा लांघता है, तो हर सचेत मा-बाप की सर्वोपरि इच्छा होती है कि उनके बच्चे को बढ़िया शिक्षा मिले क्योंकि अविद्याजीवनं शून्यं - शिक्षा के बगैर जीवन शून्य है। हम भारतीय ज्ञान की देवी सरस्वती के समक्ष प्रार्थना करते हैं - तमसो मा ज्योतिर्गमय। वास्तव में अज्ञानता से बड़ा कोई अंधेरा नहीं और ज्ञान से बड़ा कोई प्रकाश नहीं।
परन्तु शिक्षा क्या है और इसका उद्देश्य क्या हो? पढ़ना-लिखना आ जाए, अंगूठे की छाप की जगह हस्ताक्षर करना आ जाए, डिग्री प्राप्त करना, फ़िर नौकरी हासिल करना और पैसा कमाने की मशीन बनना, क्या यही शिक्षा है? शिक्षा का मतलब केवल जानकारी इकट्ठा करना ही नहीं है, बल्कि एक बेहतर इन्सान बनना इसका मूल उद्देश्य है। मूल्यहीन शिक्षा अनर्थकारी हो सकती है। मानव मूल्यों को छोड़ कर केवल मस्तिष्क से शिक्षित होने का मतलब है समाज के लिए दानवी प्रवृति वाले व्यक्ति को तैयार करना। ज्ञानी तो रावण भी कम नहीं था, परन्तु नैतिकता उसके चरित्र में नहीं थी। नतीज़ा - लंका का विध्वंस।
नि:संदेह शिक्षा का उद्देश्य बेहतर इन्सान बनना है, जो साफ़ और समर्पित ह्र्दय से काम करें। मूल्यहीन शिक्षा उस खुदा की तरह है, जो खुदा तो है पर उसमें फ़रिश्तों जैसा दिल नहीं। फ़रिश्तों का दिल नहीं, तो ख़ुदा कैसा और अगर इंसानियत नहीं, तो इंसान कैसा? मनुष्य चाहे कितना ही सुंदर हो, वह कितना ही सुरीला क्यों न बोलता हो, परन्तु यदि वह मानवीय मूल्यों से शून्य है, तो उसमें और पशु में कोई ज़्यादा फ़र्क नहीं।
मनुष्य कोई बेज़ान झोला नहीं जिसमें जानकारी या तथ्य समेटे जाएं। मानवीय मूल्यॊं को शिक्षा के साथ समाहित करने का दायित्व मा-बाप और शिक्षक पर आता है। महान दार्शनिक अरस्तु ने सही फ़रमाया है, " मानवीय मूल्यों की शिक्षा देने का सब से बढ़िया तरीका है, अपने शिष्यों के साथ व्यवहार में इसे अम्ल में लाना।" उपदेश से बेहतर है उदाहरण प्रस्तुत करना।
शिक्षक अपने शिष्यों को केवल सूचना और तथ्यों का ही अंतरण नहीं करता, बल्कि उनमें इस ज्ञान को विवेक के साथ इस्तमाल करने की सलाहियत को भी निखारता है। शिक्षा केवल आजीविका कमाने के लिए ही नहीं, बल्कि यह भी सिखाती है कि आदर्श और नैतिक जीवन समाज का स्तंभ होता है। शिक्षा व पढ़ने-लिखने का मूलभूत उद्देश्य विद्यार्थी को एक अच्छा इन्सान बनाना है न कि पढ़े-लिखे शैतान। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं:
हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, ये समस्याएँ सभी

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