Thursday, 11 August 2016

क्योंकि बायोमिट्रिक मशीन झूठ नहीं बोलेगी


सरकारी विद्यालयों से नदारद व लेटलतीफ़ गुरुओं के लिए ये पचा पाना मुश्किल हो रहा है कि शिक्षा विभाग हर विद्यालय में उनकी हाज़री बायोमिट्रिक छाप द्वारा दर्ज़ करवायेगा और बाकायदा इस पर निगाह भी रखेगा! वे कसमसा रहे हैं और झुंझलाहट में अगर-मगर वाले कई सवाल कर रहे हैं! उनकी मनोस्थिति को इस तरह बयां किया जा सकता है - मसरूफ़ थे सब अपनी ज़िंदगी की उलझनों में, ज़रा सी ज़मीन क्या हिली कि खुदा याद आ गया! इस लिए वक्त मशीन की इस्लाहियत पर सवाल दागने का नहीं, बल्कि ये सोचने का है कि अगर देरी से आए और जल्दी खिसक गए तो अब खैर नहीं क्योंकि मशीन झूठ नहीं बोलेगी! अगर आप इससे छेड़-छाड़ करने की सोच रहे हो तो बता दें ये गैरकानूनी है! अगर ऐसे विद्यालय में तबादला करने की सोच रहें हैं जहां बायोमिट्रिक मशीन नहीं है, तो उस ख्याल को छोड़ दीजिए क्योंकि देर-सवेर बायोमिट्रिक मशीन हर विद्यालय में लगने वाली है! ऐसी मन्शा रखने वालों को समझ जान चाहिए: घबरा कर वो ज़माने से कहते हैं कि मर जाएंगे, मर कर भी चैन न आया तो फ़िर किधर जाएंगे?
बेशक मज़बूरियों के चलते विभिन्न अध्यापक संघ इस पहल का खुलकर स्वागत नहीं कर पा रहे हैं या वे इस बावत अपनी प्रतिक्रिया देने से कतरा रहे हैं या फ़िर दबी ज़ुबां में इसकी खामियों को तलाश कर गिनाने में लगे हैं! मगर शिक्षा विभाग द्वारा उठाय गया यह एक सराहनीय कदम है! जिस ज़र्ज़र हालत में हमारी शिक्षा आज़ है उसे देखते हुए इस तरह की पहल लाज़मी है! 
शिक्षा में हर खामियों के लिए सरकार को ही दोष देना अपने अंदर की खामियों पर पर्दा डालने वाली बात है! कुछ अंगुलियां आप पर भी निशाना साधे हैं, गुरुवर! यह आयने की तरह साफ़ है कि आज सरकारी गुरुजी पर या तो सरकार व प्रशासन भरोसा करने को तैयार नहीं या यूं कहिए गुरुजी जी समाज़ में तेज़ी से अभिभावकों व लोगों का भरोसा खोते जा रहे हैं! फ़िर हमार शिक्षा विभाग बहुत विस्तृत है और हमारे वतन का मुस्तक्बिल इसी विभाग पर ठहरता है! इस लिए निगाहें गुरुओं पर होना स्वभाविक है! बात चाहे जो भी हो, खामियां खंगालने की बजाए गुरुओं को इस पहल का स्वागत करना चाहिए! अगर वो ऐसा नहीं करने की फ़िराक में है तो वो अपने ढोल के पोल खोल रहे हैं! 
बेशक गुरु राष्ट्र निर्माण की नींव तैयार करते हैं और उनसे उपेक्षा की जाती है वै कर्तब्यनिष्ठ हो कर नई नस्ल के लिए आदर्श साबित हों! ऐसा भी नहीं है कि वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं! बहुत से अध्यापक इस कसौटी पर खरे उतर भी रहे हैं और अध्यापक समुदाय के लिए एक प्रेरणा और शिक्षा जगत के लिए गौरव हैं! परन्तु बहुत से ऐसे भी हैं जो सिर्फ़ रस्म अदायगी कर रहे हैं! उनका क्या? उनका क्या जो छाती ठोक कर ये कहते हैं - ’कौन पूछता है?’ और ’कोई क्या उखाड़ लेगा?’
वास्तव में आदरणीय गुरुजन भी उस लचर ब्यस्था का ही हिस्सा है जहां देरी से आना, जल्दी निकल जाना हमारे देश के हर सरकारी विभाग में काम करने की संस्कृति बन गयी है! ये भरोसा कर लेना कि वे स्वत: ही अपने इस अंदाज़ को छोड़ देंगे, मगरमच्छ से ये सोच कर दोस्ती करने वाली बात है कि वह ऐसा करके हमें नहीं खाएगा! दरअसल हमारी ब्यव्स्था न्यूटन के पहले नियम के अनुसार चल रही है अर्थात जब तक कोई बाहरी शक्ति का इस्तमाल न किया जाए तब तक हम काम करने के तौर-तरीके बदलने को तैयार नहीं होते और नयी ब्यव्स्था अपनाने से कतराते हैं चाहे ये ब्यव्स्था बेहतर ही क्यों न हो! डंडे के बल पर ही काम करने की आदत पड़ गयी है! 
बायोमिट्रिक मशीन लगने से सब से पहले तो वे प्रधानानाचार्य महोदय चैन की सांस लेंगे जो लेटलतीफ़ गुरुओं को या तो कुछ कह नहीं पाते या उन्हें रोज़ इस बात पर चिकचिक करनी पड़्ती है! दूसरे ऐसे साहबों की भी कमी नहीं है, जो देरी से विद्यालय पहुंचते हैं औए साथ में वक्त की अहमियत का सबक भी पढ़ाते हैं! ऐसे साहबों की दुरुस्तगी भी बायोमिट्रिक मशीन करेगी और जब किसी संस्था के साहब दुरुस्त होंगे तो उनकी नाक के नीचे काम करने वले बहुत सारे कर्मी खुद ब खुद दुस्रुस्त हो जाएंगे! विद्यालयों में तैनात गैर शिक्षक कर्मचारियॊं पर भी बायोमिट्रिक मशीन नकेल ठोंक सकती हैं! भाड़े पर अध्यापक रखना और हाज़री में गड़्बड़झाला जैसी घट्नाओं पर भी रोक लगेगी! 
ज़ाहिर है ब्यवस्था नई है, खामियों भी होगी, पर ऐसी नहीं कि दूर नहीं की जा सकती! मैं ये दावा तो नहीं ठोंक सकता कि बायोमिट्रिक मशीन शिक्षा के लिए रामबांण औषधि है, पर ये बेलगाम व बिगड़ैल शिक्षकों पर शिकंजा जरूर कस सकती है! जरुरत है विभाग इसे रस्म-अदायगी न समझ कर, गंभीरता से कार्यान्वित करे! अगर इसके साथ सी सी टीवी कैमरे भी लग जाए तो शिक्षा के लिए सोने पर सुहागा! अत: गुरुओं को चाहिए कि बायोमिट्रिक मशीन का स्वागत कर अपने आप को नई ब्यवस्था के साथ सुव्यवस्थित करें!

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