आज शिक्षा उस मोड़ पर आ गयी है जहां खड़े हो कर आगे का रास्ता देखा जाए तो लगता
है कि देश की भविष्य की चिंता शिक्षक, आला
अफ़सर, सियासतदां सभी जताते हैं पर हुक्म, आशा और चाहत से आगे बात नहीं बढ रही! जहां सब पास की नीति नासूर बनती जा
रही है और छात्रों पंगु बनते जा रहे हैं, वहां 0-25% परीक्षा
परिणाम का आना कोई असामान्य घटना नहीं! इस तरह की घटनाएं होती ही रहेंगी! माना कि 0-25%
जैसा खराब परिणाम शिक्षकों के निट्ठल्लेपन और नाकाबलियत की ओर ईशारा
करती है! ये भी माना उसमें दुनियां भर की बुराइयां आ गयी है, पर क्या सभी ऐसे अध्यापक हैं? और पूरे का पूरा ठिकरा
अध्यापकों के सर पर फ़ोड़ देना क्या वास्त्विक हल है? बहुत
सारे अध्यापक ऐसे जरूर होंगे जो कार्य के प्रति निष्ठा नहीं रखते, पर क्या सभी?
और क्या उनके निट्ठल्लेपन के लिए विभाग
या आला कमान जिम्मेबार नहीं?
अगर साहब लोगों को लगता है कि शिक्षक निट्ठल्ले व कामचोर हैं और उनका तबादला
करना चाहिए तो बेशक कीजिए पर थोड़ी उनकी भी सुन लीजिए! जरा ये भी जरूर सोचिए कि
क्या अध्यापकों का तबादला रामबांण औषधि है! जी नहीं - आप ऐसा करके बहुत बड़ा
सुधारात्मक कदम नहीं उठा रहे हैं, बल्कि समस्या
एक जगह से दूसरी जगह तबदील हो रही है! यकिन मानिए ऐसा करना केवल एक बिहार बनाने की
तैयारी मात्र है! अगर 100% परीक्षा
परिणाम ही अच्छे अध्यापक की कसौटी है तो ये काम भी मु्श्किल
णहीं साहब - नकल ही तो करवानी है! ऐसे में जिन नौजवानों की फ़ौज़ हम बनाएंगे वो टोकरी में रखे उन आमों की तरह होगी
जो दिखेंगे शानदार पर उनका रस सिर्फ़ खठास ही करेगा!
सारे
वर्ष कुंभकर्णीय नींद मे सोए रहना, और
परिणाम आने पर चौकन्ने हो जाना - ऐसा न विभाग के लिए न्यायसंगत है
न शिक्षकों के लिए तर्कसंगत! फ़िर बौखलाहट में
अध्यापकों को सूली पर चढा देना - अगर ये हल है तो कभी
समस्या समाप्त नहीं होगी बल्कि और विकट रूप धारण करेगी! ऐसे में "देश के कोने कोने को बिहार बना कर
छोड़ेंगे" का नारा जरूर साकार हो जाएगा!
सियासतदां
और अधिकारी स्वयं विभिन्न मंचों से मान चुके हैं
कि आठ्वीं कक्षा तक सब का पास हो जाने से एक आठवीं पास छात्र गुणा भाग तक नहीं कर सकता फ़िर
एका एक बेहतर परिणाम की इछा रखना - ये कैसा तर्क
है ! यहां मंजिल तो सही है, पर साहब आप शिक्षकों को उस नाव में बिठा रहे हो जो विपरीत दिशा में जा रही हैं!
सत्रह
वर्ष के कार्यकाल में मैने मुशिकल से एक आध बार किसी आला अफ़सर को किसी स्कूल का
निरिक्षण करते देखा है और वो भी पहले सूचित कर! क्या
पूरे वर्ष ये जानने की कोशिश की जाती है कि अमूक अध्यापक अपना कार्य सही मायनों
में कर रहा है? क्या इस बात को तरजीह दी जाती
है कि अध्यापक का पद खाली न रहे? क्या अध्यापक नियुक्ति
के समय योगयता को दरकिनार नहीं किया जाता? पिछले दस बारह वर्षों से चल रहे आर एम एस ए
और एस एस ए के कार्यक्र्म के अंतर्गत किसी एक भी कामचोर शिक्षक की क्लास ली गयी? क्या कभी इस ओर ध्यान दिया गया कि अध्यापक को कितने गैर शिक्षण कार्य करने
पड़ते हैं? इसके लिए भी क्या शिक्षक ही
जिम्मेदार है?
अंधेरों की शिकायत से कुछ नहीं होता जनाब,
ये भी देखिये कि रोशनी की मज़बूरियां क्या है!
इस
बात में जरा भी संदेह नहीं कि सब पास निती ने शिक्षा का स्तर
तो गिराया ही है, साथ में काम चोरों को कामचोरी
की पूरी छूट दे दी! वे कगज़ के पेट बखूबी भर लेते
हैं और विभाग भी इतिश्री मान लेता है! आगे
ये क्या करेंगे, ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं!
शिक्षकों के पास मां -बाप बड़े भरोसे
अपनी संतान भेज रहे हैं ! उसे अपनी संतान समझ कर
बेहतरीन
तालीम देना शिक्षक का परम कर्तब्य है!
जाँन
एफ़ केनेडी ने कहा था "एक गलत शिक्षित बच्चे का मतलब है एक
बच्चे का खो जाना"! और आला अधिकारियों से इल्तज़ा
है कि आप बेशक दोषी व निट्ठ्ल्ले शिक्षकों को दंडित कीजिए, पर पूरे अध्यापक समुदाय को प्रताड़ित कर शिक्षा सही राह नहीं पा सकती:
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं
ही कोई बेवफ़ा नहीं होता
जी तो बहुल चाहता है सच बोलें, क्या करें होंसला नहीं होता
वाह जनाब ब्लॉग पर सक्रियता तो हुई
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