Sunday 19 December 2010

भाषा कट्टरवाद छोड़िए

कसर हिन्दीवादी देशप्रेमी राष्ट्र भाषा के नाम पर अंग्रेज़ी के विरुद्ध बहुत बड़ा बवाल खड़ा कर देते हैं ! इस तरह की अंग्रेज़ी विरोधी विचारधारा पर मुझे सख्त एतराज़ है जिस में हिन्दी के लिए अंग्रेज़ी को कोसा जाए ! यह कह कर मेरा मकसद कोई विवाद खड़ा करना नहीं क्योंकि मुझे तो इस बात पर भी ऎतराज़ है कि अंग्रेज़ी को हिन्दी की बली चढ़ा कर तरजीह दी जाए ! यह भी कतई न माना जाए कि मैं देशद्रोही हूं और न ही मैं यह मानने को तैयार हूं हिन्दीवाले मुझ से ज़्यादा देशभक्त हैं ! अंग्रेज़ी का प्रयोग कर भी मैं उतना ही हिन्दुस्तानी हूं जितना हिन्दी का प्रयोग कर ! वास्तव में दोनों ही भाषाएं मुझे अज़ीज़ है ! ये दो ही क्यों ? मैं इस बात में खुशी मह्सूस करूंगा कि मुझे अधिक से अधिक भषाओं का बोध हो और मैं इन भषाओं को बोल और लिख सकूं ! सभी भषाओं को समान दॄष्टि व सम्मान से देखना एक दिलेर संस्कृति की द्योतक है ! ये कहने की आवश्यकता नहीं है कि अगर हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है तो अन्ग्रेज़ी एक वैश्विक भाषा !
जहां तक भाषा के पढ़ने-पढ़ाने की बात है् तो निःसंदेह हिन्दी का दर्ज़ा अंग्रेज़ी से पहले आना ही चाहिए क्योंकि हिन्दी भाषा किसी अन्य भाषा के मुकाबले हमरी संस्कृति को बेहतर ढंग से व्यक्त करती है ! इस दृष्टि से यह हमें जोड़े रखने में अहम भूमिका अदा करती है ! पर इस के मायने ये नहीं कि किसी हिन्दी भाषा की ठेकेदारी ले कर हम दूसरी भाषा को गाली दें ! वास्तव में अगर हिन्दी को विश्व स्तर पर अपना डंका बजाना है तो अंग्रेज़ी इस में अहम भूमिका निभा सकती है ! अतः अंग्रेज़ी को तिरस्कृत नहीं बल्कि परिष्कृत करना चाहिए !
किसी विशेष भाषा को तरजीह देकर, किसी दूसरी को तिरस्कृत करने का विचार एक कुन्द सोच रखने वाला भाषाई कट्टरवादी ही रख सकता है ! हिन्दी को महत्व दिया जाय, मुझे कोई शिकायत नहीं, मगर ये मुझे गंवारा नहीं कि अंग्रेज़ी को तिरस्कृत किया जाय ! हम बेहतर हिन्दी बोलें व लिखें पर इस सब के बाद इस लोकतन्त्र में हर एक व्यक्ति किसी भी भाषा क प्रयोग करने के लिए स्व्तन्त्र है !
भूलना नहीं चाहिए कि अंग्रेज़ी सहित्य ने भारत को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाया है ! अनीता देसाई, आर के नारायनन, खुशवन्त सिंह, राजा राव अंग्रेज़ी साहित्य में छोटे नाम नहीं हैं ! किरन देसाई की ‘Inheritance of Loss' अर्विंद अडिगा की ‘The White Tiger', आरुन्धती की 'God of Small things'  ऐसी कृतियां है जिनके कारण साहित्य के क्षेत्र में भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना झंडा गाड़ा है ! अगर टैगोर की ’गीतांजली’ अंग्रेज़ी में अनुवादित न हुई होती तो नोबेल उन्हें न मिलता !
सृजनात्मक सहित्य से हट कर भी भारतीय लेखकॊं ने अन्य विषय में अंग्रेज़ी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना कर देश का नाम रोशन किया है ! अर्बिंन्दो घोष, नेहरू, गांधी, अमार्तय सेन और अबुल कलाम की पुस्तकें इस बात कि द्योतक हैं कि अंग्रेज़ी को माध्यम बना कर भी ये व्यक्ति इस देश के आदर्श माने जाते हैं !
कोई भी भाषा अपने साथ सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य लिये होती है ! विभिन्न भाषाओं की जानकारी रखना, उन्हें स्वीकार कर लेना, उन्हें सम्मिलित कर लेना एक दिलेर व अमीर संस्कृति के गुण हैं ! शायद अंग्रेज़ी की यही फ़ितरत है कि यह आज वैश्विक भाषा है !
निज भाषा को उन्नति है सब उन्नति को मूल - भारतेन्दु जी के इन शब्दों पर मुझे जरा भी संदेह नहीं, पर उन्होंने कभी भी ऐसा नहीं कहा और न ही उनका कभी यह आशय रहा कि - पर भाषा को निन्दा है सब उन्नति को मूल !      

11 comments:

  1. आपने बिलकुल सही कहा है ...

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  2. baat me dum hai, lekin bhi bhi matri bhasha yani hindi ko uska hakk milna hi chahiye...:)

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  3. विरोध ठीक नहीं है .. पर ये भी सच है की अपनी भाषा पर गर्व जरूर होना चाहिए ... सहमत हूँ आपकी बात से ..

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  4. भाषाई कट्टरतावाद बिल्कुल उचित नहीं।
    मनुष्य को तो अधिक से अधिक भाषाएं सीखने का प्रयास करना चाहिए, इससे ज्ञान प्राप्ति के नए-नए रास्ते खुलते हैं।

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  5. कोई भी भाषा अपने साथ सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य लिये होती है
    xxxxxxxxxxxxxxxxxx
    बहुत सही ...आपका विचारों में समन्वय की झलक है ....बहुत शुक्रिया आपका ..

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  6. bali ji -aapne sahi likha hai ki jyada se jyada bhashaye aana garv ki baat hai lekin bharat me english ka jo virodh hai vo shayad is liye jyada hai kyoki bharat me angreg shasan ke samay yah prachalan me jyada aai aur angrejon ne apni is bhasha ke madhayam se hamari matr-bhasha ko neecha dikhane ka satat prayas kiya .aaj bhi log ek bhasha se badkar english ko ''status''ka prateek mante hai .

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  7. कट्टरवाद तो किसी भी जगह,कभी भी, कहीं भी अच्छा नहीं होता

    सहमत हूं आपसे

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  8. bohot hi sahi aur relevant baat kahi hai aapne sir. i completely agree with you. bangalore mein pali badi hone ki wajah se angrezi ka zyada prabhav raha hai mujhpar....mere sabhi doston se english mein hi baatein hoti hain. phir bhi....jab koi hindi mein sawaal ka english jawaab deta hai...to bada gussa aata hai...

    dono ka apna sthaan hai....koi bhasha kisi se kam nahin...aur sabhi bhartiyon ko ye dono bhashayein to aani hi chahiyen :)

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  9. linguistic bigotry is as undesirable as religious or other bigotry.
    nice post !

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