Wednesday 22 December 2010

आग

सीने में मेरे सुलग रही है आग
डरता हूं कहीं जल ना जाऊं
कभी पड जाती शीतल,
फ़िर अचानक धधक उठती है आग

शायद ज़िन्दा हूं मैं
तभी सुलगती है ये आग
मर जाऊं, हो जाऊं मैं शान्त
फ़िर नहीं सुलगेगी ये आग 

पर क्यों  जाऊं  मुर्दा अचेत, निश्चल ?
क्यों हो जाऊं मॆं शामिल इस भीड़ में ?

नहीं, मैं जीना चाहता हूं इस तरह से,
कि सुलगती रहे ये आग
आज मेरे सीने में जलती,
कल हर सीने में जलाना चाहता हूं मैं  आग 

11 comments:

  1. AAg jalti rahe aur roshan karti rahe jamane ko !

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  2. अच्छा प्रयास
    हलचल जरूरी है जीने के लिये

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  4. नहीं, मैं जीना चाहता हूं इस तरह से,
    कि धधकती रहे ये आग !
    आज मेरे सीने में जलती,
    कल हर सीने में जलाना चाहता हूं मैं ये आग !


    बिना आग के कोई काम अंजाम तक नहीं पहुंच पाता....
    अच्छा प्रयास

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  5. पर क्यों हो जाऊं मे अचेत, निश्चल ?
    क्यों हो जाऊं मॆं शामिल इस भीड़ में ?
    नहीं, मैं जीना चाहता हूं इस तरह से,
    कि धधकती रहे ये आग !
    आज मेरे सीने में जलती,
    कल हर सीने में जलाना चाहता हूं मैं ये आग !


    BAhut khub Bali ji ...............ye aag u hi jalni chhahiye

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  6. @--कल हर सीने में जलाना चाहता हूं मैं ये आग !

    Very inspiring line !

    .

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  7. बेहतरीन प्रस्तुति कम शब्दों में बहुत कुछ

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  8. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम ...।

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  9. पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

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  10. बाली जी यह आग बुझने मत देना !
    शुभकामनाएं !

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