वर्तमान परिदृष्य का अवलोकन करें तो भ्रष्टाचार पर काफी कुछ लिखा जा रहा है , काफी कुछ कहा जा रहा है, लेकिन स्थिति जस की तस है !नित ऐसे ऐसे घोटाले सामने आ रहे हैं कि एक अच्छी और ईमानदार सोच रखने वाले हतप्रभ रह जाते हैं ! जहां एक रुपए का हिसाब न मिलने पर हमारी नींद हराम हो जाती है , वहीँ अरबों का माल गटकने वाले इतना माल गटकने पर भी डकार नहीं लेते !
आज कलम भ्रष्ट है, सोच भ्रष्ट है, तन भ्रष्ट है, मन भ्रष्ट है, कर्म भ्रष्ट है और आत्मा मृत प्राय ! जो भष्ट नहीं , उसे या तो भ्रष्ट बनने पर मजबूर किया जाता है, या वो इस लिए ईमानदार बना रहता है क्योंकि उसे भ्रष्ट बनने का मौक़ा नहीं मिलता !जो अपनी आत्मा को बचाए रखता है उस ईमानदार व्यक्ति का जीवन अग्निपरीक्षा में ही गुजर जाता है !
ये कह देना कि हमारे सियासतदां भ्रष्ट है न काफी होगा क्योंकि सियासतदां को उनकी कुर्सी पर आम आदमी बिठाता है और आम आदमी भी भ्रष्ट है ! एक भ्रष्ट समाज भ्रष्ट तन्त्र का ही मन्त्र फूंक सकता है !
ऐसा इस लिए चल रहा है क्योंकि हम गांधी के देश में रहते है और हम गाँधी जी के तीन बंदरों की तरह हैं ! क्योकि हमें क्या लेना ! अगर ऐसे ही खामोश रहे तो:
धरा बेच देंगे, आसमां बेच देंगे, ये सियासतदां देश बेच देंगे !
और
बहुत खतरनाक होता है बेजान ख़ामोशी से भर जाना,
घर से निकलना और लौट आना !
बहुत खतरनाक होता हे सपनों का मर जाना !
जिस ने भी कहा, खूब कहा ! ये पंक्तिया बहुत याद आती है जब कोई अन्याय होता है और हम चुपचाप देखते रहते हैं ! कई बार मानव जात पर गुस्सा आता है, तरस आता है, घिन आती है, शर्मिंदगी होती है और ये पंक्तिया मुझे झकझोरती हैं --- सचमुच बहुत खातरनक् होता है बेजान ख़ामोशी से भर जाना !
फिर दुष्यंत कुमार की पंक्तियाँ होंसला देती हैं, प्रेरणा देती हैं कि तू चला चल अपनी राह ! अगर अपने पर भरोसा है, इरादा नेक है, और होंसले बुलंद हैं तो एक दिन सिद्ध कर सकता है की तू सचमुच इंसान कहलाने लायक है ! नहीं तो हिजड़े भी नाच नाच कर अच्छी खासी ज़िन्दगी जी लेते हैं !
पीर बड़ी पर्वत सी पिघलनी चाहिए,
हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मै चाहता हूँ कि ये सूरत बदलनी चाहिए !
तेरे सीने में न सही तेरे सीने में सही ,
हो कहीं भी मगर आग जलनी चाहिए !
आप दोनो ही भाषाओं में अच्छा लिखते है
ReplyDeleteits nice.
ReplyDeleteभ्रष्टाचार पर आपकी चिंता वाजिब है. पता नहीं ये कैसे रुकेगा.
ReplyDeleteआपकी कविता अच्छी है ..
हाँ,एक बात ये बताइए कि आपकी पोस्ट में " तारीख 26 फरवरी 2011 कैसे दिख रही है ? ये तारीख तो अभी बहुत दूर है.
बाली जी , वाकई में आपने बिलकुल सही लिखा है, आपकी चिंता भी वाजिब है. किसी शायर का एक और अंदाज़ आपकी भी नज़र है:
ReplyDelete" हम पान भी खाते हैं तो जेबें तुनकती हैं
वो भोज भी देते हैं तो खर्चा नहीं होता "
बाली जी, आपके विचारों से मैं भी इत्तेफाक रखता हूँ। आपका अंदाजे बयां भी काबिले तारीफ है।
ReplyDelete---------
शिकार: कहानी और संभावनाएं।
ज्योतिर्विज्ञान: दिल बहलाने का विज्ञान।
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ReplyDeleteतेरे सीने में न सही तेरे सीने में सही ,
हो कहीं भी मगर आग जलनी चाहिए ...
जगदीश जी ,
ये आग ही है जो जलती रहनी चाहिए । कोशिश करनी चाहिए ये आग ज्यादा से ज्यादा दिलों में भर जाए..
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surat jarur badlegi... kyon nahi badlegi jab ham-aap apni aatma ki aavaz par chalenge aur galat ka virodh karenge .. bahut achchha aahvahn ..badhai.
ReplyDeleteबहुत खतरनाक होता है बेजान ख़ामोशी से भर जाना,
ReplyDeleteघर से निकलना और लौट आना !
बहुत खतरनाक होता हे सपनों का मर जाना !
बहुत वेदना है इन शब्दों में
अच्छा लगा आपका ब्लॉग पढ़कर -
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we need such forceful words for reformation.
एक ईमानदार व्यक्ति का जीवन अग्निपरीक्षा में ही गुजर जाता है !
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सार्थक पोस्ट ...... आपकी लिखी यह पंक्ति बहुत प्रासंगिक है..... हर ओर यही हाल है...
सुन्दर लिखा आपने....
ReplyDeleteअरे आपके ब्लॉग पर बारिश ..... मेरे यहाँ तो बर्फ पड़ रही है....
बिलकुल सच बात कही आपने ...अगर हर व्यक्ति 'कुछ' नहीं होगा ऐसा सोचकर देश और समाज की दुर्दशा बेजान होकर देखता रहेगा तब तो हो गया कल्याण ! ऐसे में आगे बढ़ने की जरूरत है ----
ReplyDelete'स्वयं को आजमा के देखेंगे
एक पर्वत हिला के देखेंगे
सुना जालिम है बड़ा ताकतवर
चलो पंजा लड़ा के देखेंगे '
नित ऐसे ऐसे घोटाले सामने आ रहे हैं कि एक अच्छी और ईमानदार सोच रखने वाले हतप्रभ रह जाते हैं ! ....
ReplyDeleteसही कहा आपने। विचारणीय है।
सार्थक लेखन के लिए बधाई।
आपने बिलकुल सही लिखा है|आपकी कविता भी अच्छी है| धन्यवाद|
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