इन्सान जब पैदा होता है, वह न हिन्दु होता है, न मुस्लमान, न सिख, न इसाई, न कुछ और ! वह एक इन्सान के रूप मैं पैदा होता है ! वह न ’अल्ला हू अकबर, कह्ता है, न ’हर हर महादेव’ ! वह तो बस खुदा के घर से आया पाक दामन प्राणी होता है ! ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता है, उसे यह सिखा दिया जाता है कि वह या तो हिन्दु है या फ़िर मुस्लमान या कोई और ! मज़हब उस्की पह्चान बन जाता है ! इस मज़हबी कश्मकश मैं वह आदमियत खो देता है ! किसी एक मज़हब का हो कर खुदा, भगवान या जिजस की पैरवी करते करते वह अल्ला से दूर हो जाता है !
कोई कहता है मन्दिर मैं मिलेगा, कोई कहता है मस्जिद में मिलेगा, किसी को गिरिजाघरों में दिखाई देता है तो किसी को दीदार होते हैं मठ बिहारों में ! मगर खुदा अगर है तो वह निवास करता है इन्सान के दिल में, उस के अच्छे कर्मों में, उस की नेक नियत में ! सन्त कबीर ने क्या खूब फ़रमाया है :
मोको कहां ढूंडे
रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में,
न मन्दिर में न मस्जिद में न काबे कैलास में !
मगर इस बात को दरकिनार कर आदमी उलझा है मन्दिर और मस्जिद के विवाद में ! यों ही अगर मनिदर और मस्ज़िदें टूटती रहीं तो बंट जाएगा ये भारत कई भागों में और इस हिन्दोस्तां के अस्तितव पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान लग जायेगा ! बन जाएगा एक और पकिस्तान, एक और बंगलादेश और मालूम नहीं कितने स्तान ! इस से अच्छा तो ये है कि न मन्दिर रहे न मस्जिद रहे एक मयखाना खॊल दिया जाय क्यॊंकि-
’मन्दिर-मस्जिद बैर कराते, मेल कराती मधुशाला’! और मयखाने से निकल कर कम से कम आदमी इन्सानियत के बोल तो बोलता है:
मन्दिर वालो मुझे मन्दिर मे पीने दो,
मस्जिद वालो मुझे मस्जिद मे पीने दो,
नहीं तो ऐसी जगह बताओ जहां खुदा नहीं !
कितनी विडम्बना की बात है कि खून के लिए तड़्पते रोगी को चन्द कतरे खून के नसीब नहीं होते और वही लहू सड़्कों पर बह रहा होता है ! उस पर प्रकाष्ठा ये कि यह लहू खुदा के नाम पर बह रहा होता है !
क्या ही अच्छा हो अगर हम सब धर्मों को अपना मानें और खुद को सब धर्मों का मानें ! क्योंकि किसी शायर ने बहुत खूब कहा है -
न हिन्दु बनेगा, न मुस्लमान बनेगा,
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा !
सभी धर्मों से बड़ा है इंसानियत का धर्म.पर धर्म के ठेकेदारों को कौन समझाए.सार्थक लेखन.
ReplyDeleteरोचक लेखन।
ReplyDeleteसुन्दर लेखन।
ReplyDeleteन हिन्दु बनेगा, न मुस्लमान बनेगा,
ReplyDeleteइन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा .
बहुत प्यारा सन्देश आपने अपनी पोस्ट के माध्यम से दिया है ,काश लोग इसे समझ पाते.
जगदीश जी,
ReplyDeleteआपके लेख में वर्तमान दौर की आवश्यकता का रंग है !
काश ऐसा हो सकता तो यह धरती स्वर्ग बन जाती !
सुन्दर विचारों से परिपूर्ण आपका लेख समाज को सकारात्मकता की ओर चलने की प्रेरणा दे रहा है !
बधाई और नव वर्ष की शुभकामनाएँ !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
aapke vichaar
ReplyDeletebahut paak aur saaf hain...
aaj zaroorat hai k hm sb
isi tarah ki soch apnaaeiN
a b h i v a a d a n .
आपका लेखन बहुत सार्थक है ...इंसानियत को जिन्दा रखना आज की बड़ी आवश्यकता है ...शुक्रिया
ReplyDeleteनव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें
बहुत ही प्रेरणादायक पोस्ट है...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी सीख है...
and thank you so much for the hot tea... :)
and HAPPY NEW YEAR...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteनव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें
kabhi samay mile to yahan //shiva12877.blogspot.com per bhe aayen.
likha achcha. par kab tak ham yahi baten karte rahenge, kya bar-bea hame janmansh ko yah btana jaruri hay?
ReplyDeleteshashi parganiha
सार्थक सन्देश. आभार...
ReplyDelete2011 का आगामी नूतन वर्ष आपके लिये शुभ और मंगलमय हो,
हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
नये वर्ष की अनन्त-असीम शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति. नूतन वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं .
ReplyDeletehriday sparshi lekh .aapka blog achchha laga aapko nav varsh ki badhaiyan
ReplyDeleteसुन्दर लेखन...
ReplyDeleteनव वर्ष आपके जीवन को नए आयाम दे.
साधुवाद.
सार्थक आलेख। इस सुन्दर सन्देश देते लेख के लिए आपका आभार। हमारा भी कामना है , भेद भाव दूर हों।
ReplyDeleteनया साल आपके और आपके घर-परिवार के लिए मंगलकारी हो.
ReplyDeleteआज के वातावरण में लिखा बहुत ही सार्थक लिख है ...
ReplyDeleteआपको और आपके पूरे परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो ...
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ReplyDeleteसपरिवार आपको नव वर्ष की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं.
नव वर्ष २०११ और एक प्रार्थना
... gambheer maslaa ... saarthak charchaa ... prasanshaneey post ... nav varsh ki haardik badhaai va shubhakaamanaayen !!
ReplyDeleteउम्दा लेख आप को नए साल की मुबारकवाद
ReplyDeleteभाईचारे का पैगाम देती सार्थक पोस्ट।
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ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग मै आई पर आकर बहुत अच्छा लगा !
ReplyDeleteबहुत सही कह आपने कि इन्सान जब पैदा होता है तो उसका कोई मजहब नहीं होता हमी उसे ये सब सिखाते हैं और भगवान से दूर करते जाते हैं !
बहुत खुबसूरत विचार एसा लगा जेसे मै ही कह रही हु !
बहुत ही प्रेरणादायक ,सामयिक लेख |
ReplyDeleteआपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteसच है, सबसे बडा धर्म ही इंसानियत है।
फालो करने के लिए धन्यवाद
प्रेरणादायक सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती अच्छी रचना ..
ReplyDeleteमन्दिर वालो मुझे मन्दिर मे पीने दो,
ReplyDeleteमस्जिद वालो मुझे मस्जिद मे पीने दो,
नहीं तो ऐसी जगह बताओ जहां खुदा नहीं !
बहुत खूब .....
खुदा ने किसी को हिन्दू मुस्लिम न बनाया था ...
ये इंसान ने ही एक दुसरे से लड़ने के तरीके ढूंढ लिए .....
आपके विचारों के अनुरूप उदाहरण समाज में हैं, वैसे इनकी चर्चा कम ही होती है. मैंने यहां http://akaltara.blogspot.com/2010/05/blog-post_18.html एक नमूना लगाया था, आपकी रुचि का हो सकता है.
ReplyDeleteइंसानियत ही सबसे बडा मजहब है
ReplyDeleteफालो करने के लिए धन्यवाद
अरे बहुत दिनों से कोई रचना नहीं लिखी ...शिमला में ज्यादा ठण्ड तो नहीं है न ....
ReplyDeletebahut sundar post bhai baliji badhai www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com
ReplyDeleteइंसानियत का धर्म सभी धर्मों से बड़ा है|बहुत प्यारा सन्देश|धन्यवाद|
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ReplyDeleteइंसानियत का धर्म जो सबसे बड़ा है वही हम भूल जाते है....
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत लेख !
मनुष्यता ही सबसे बड़ा धर्म है ! बहुत सुंदर संदेश है ! आभार !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDelete"हट जाओ वेलेण्टाइन डेे आ रहा है!".
bachchan sahib ne bhi sahi kahaa tha.....
ReplyDelete"bair karaate mandir maszid pyaar badhaati madhushala....."
अच्छी सीख है उन लोगों के लिए जो स्वार्थ पूति अथवा, राजनीति की रोटियां सेंकने के लिए धर्म के नाम का उपयोग करते हैं .
ReplyDeleteअगर आप के द्वारा बताई गई ये बात सभी लोग समझ जाएं तो देश और समाज का कितना भला होगा। मज़हब ओर धर्म के नाम पर लड़ाई क्यों होगी।
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