कुछ लम्हे ठहर, रहम कर मुझ पर,
मत पुकार यूं मुझे बार-बार !
लेने दे मुझे चन्द सांसें सकून की,
जीने दे कुछ पल मुझे भी अपने !
उम्र भर भटकता रहा हूं यूं ही
मैं क्षितिज पर अनन्त !
न मंजिल, न जहां कोई मेरा अपना,
लड़खड़ाता, टूटता-जुड़्ता, फिसल कर संभलता,
समेटता खुद को, ज़ज़बातों को छुपाता,
असूलों को जीता, भटकता रहा हूं यूं ही
मैं क्षितिज पर अनन्त !
बस, अब बस ! थोड़ी देर ठहर !
लेने दे मुझे चन्द सांसें सकून की !
फिर आऊंगा मैं लौट कर रहा मेरा वादा !
ठहरना चाहता हूं, रुकना नहीं !
ताकि भर सकूं खुद में फ़िर से शक्ति अपार,
विश्वास अगाध, और लड़ सकूं तुझ से !
बस इसलिए, लेने दे मुझे चन्द सांसें सकून की !
“वास्तव” को परिभाष्ति करने की कला कोई आपसे सीखे - “जांपनाह, तुसी ग्रेट हो - तोहफा कबूल करो”
ReplyDeleteSundr aur bhavpurn abhivyakti.shubkamnayen.
ReplyDelete... bahut sundar ... behatreen rachanaa ... badhaai !!!
ReplyDeletebahut hi sunder ehsas ke sath sunder prastuti............
ReplyDeletebahut achchi lagi.
ReplyDeleteफिर आऊंगा मैं लौट कर रहा मेरा वादा !
ReplyDeleteठहरना चाहता हूं, रुकना नहीं !
ताकि भर सकूं खुद में फ़िर से शक्ति अपार,
विश्वास अगाध, और लड़ सकूं तुझ से !
बस इसलिए, लेने दे मुझे चन्द सांसें सकून की !
Behad sundar!
Nihayat khoobsoorat rachana hai!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर एहसास के साथ सुन्दर प्रस्तुति|
ReplyDeleteसुन्दर रचना, साधुवाद.
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति की अनंत संवेदनाये समाहित हैं आपकी इस रचना में !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
5.5/10
ReplyDelete"ठहरना चाहता हूं, रुकना नहीं !
ताकि भर सकूं खुद में फ़िर से शक्ति अपार,"
सुन्दर रचना
सार्थक अभिव्यक्ति
ठहरना चाहता हूं, रुकना नहीं !
ReplyDeleteताकि भर सकूं खुद में फ़िर से शक्ति अपार,"
बहुत ही सुन्दर एहसास !
बहुत ही सुन्दर एहसास के साथ सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteफिर आऊंगा मैं लौट कर रहा मेरा वादा !
ReplyDeleteठहरना चाहता हूं, रुकना नहीं !
ताकि भर सकूं खुद में फ़िर से शक्ति अपार,
विश्वास अगाध, और लड़ सकूं तुझ से !
बस इसलिए, लेने दे मुझे चन्द सांसें सकून की !
Sunder panktiyan ......Badhai......
.......behtreen rachna.
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