डरता हूं कहीं जल ना जाऊं
कभी पड जाती शीतल,
फ़िर अचानक धधक उठती है आग
शायद ज़िन्दा हूं मैं
तभी सुलगती है ये आग
मर जाऊं, हो जाऊं मैं शान्त
फ़िर नहीं सुलगेगी ये आग
पर क्यों जाऊं मुर्दा अचेत, निश्चल ?
क्यों हो जाऊं मॆं शामिल इस भीड़ में ?
नहीं, मैं जीना चाहता हूं इस तरह से,
कि सुलगती रहे ये आग
आज मेरे सीने में जलती,
कल हर सीने में जलाना चाहता हूं मैं आग
AAg jalti rahe aur roshan karti rahe jamane ko !
ReplyDeleteअच्छा प्रयास
ReplyDeleteहलचल जरूरी है जीने के लिये
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ReplyDeleteनहीं, मैं जीना चाहता हूं इस तरह से,
ReplyDeleteकि धधकती रहे ये आग !
आज मेरे सीने में जलती,
कल हर सीने में जलाना चाहता हूं मैं ये आग !
बिना आग के कोई काम अंजाम तक नहीं पहुंच पाता....
अच्छा प्रयास
bahot achche.
ReplyDeleteपर क्यों हो जाऊं मे अचेत, निश्चल ?
ReplyDeleteक्यों हो जाऊं मॆं शामिल इस भीड़ में ?
नहीं, मैं जीना चाहता हूं इस तरह से,
कि धधकती रहे ये आग !
आज मेरे सीने में जलती,
कल हर सीने में जलाना चाहता हूं मैं ये आग !
BAhut khub Bali ji ...............ye aag u hi jalni chhahiye
@--कल हर सीने में जलाना चाहता हूं मैं ये आग !
ReplyDeleteVery inspiring line !
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बेहतरीन प्रस्तुति कम शब्दों में बहुत कुछ
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम ...।
ReplyDeleteपहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
ReplyDeleteबाली जी यह आग बुझने मत देना !
ReplyDeleteशुभकामनाएं !