Wednesday 7 March 2012

शून्य में खुद को खोजती नारी ( updated )

 अगर महिला आरक्षण विधेयक व घरेलु हिंसा निरोधक कानून के लागू होने से, नारी सशक्तिकरण का राग अलापने से या सड़क पर उतर कर अधिकारॊं का डंका ठोकने से नारी का उत्थान हो सकता तो शायद हमारे देश की नारी कब की बिना टिकट ही चांद पर पहूंच जाती ! अरे आप तो सोचने लगे कि मैं नारी विरोधी बात कर रहा हूं ! जी नहीं, आप बिल्कुल गलत है और मैं सोलह आने ठीक ! जरा सोचिए आप ने अपने अपने घरों मैं अपनी पत्नी, बहिन, बेटी को कितनी भागीदारी, आज़ादी व अधिकार दिए हैं ! कहीं ऐसा तो नहीं कि आप गलियों मैं नारी सम्मान की डींग मारते हो और अपने घर में पत्नी, बहिन, बेटी इन तीनों पर अपने मर्द होंने की धौंस ठोकते हो ! अगर वाकई आप अपने घरों में भी नारी का सम्मान कर पाते हो तो महिला आरक्षण विधेयक व घरेलु हिंसा निरोधक कानून की आवश्यकता ही नहीं, न ही नारी को सड़क पर नारे ठोकने की जरूरत है !

वास्तव में पुरुष को ज़हनी तौर से नारी को उसका स्थान देना होगा और नारी को हाथ पसार कर नहीं बल्कि अपनी शक्ति को स्वयं पहचानना होगा ! इसके लिए शिक्षित होने के साथ नारी सचेतना की आवश्यकता है !

अब तो लेखक भी नारी की व्यथा लिखते लिखते थक गये हैं ! लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात ! कह्ना गलत न होगा कि हम नारी को सशक्त बनाने के नाम पर हमेशा उसे यही एहसास दिलाते हैं कि वह आज भी अबला है ! आधुनिकता के इस दॊर में भी हमरे देश की नारी अपने हिस्से का आसमां खोज रही है !

कानून कितने ही बना लिये जायें, पर लगाम मर्द आसानी से छोड्ने वाला नहीं ! ऐसा नहीं है कि आज की नारी को मौका नहीं मिल रहा ! देखना होगा की नारी को यह सब कुछ मिलने के बाद भी क्या वह अपने अधिकरों का प्रयोग करने में आज़ाद है ! स्थानीय निकायों में कितनी ही महिलायें चुनी जाती हैं ! पर वे या तो निष्क्रीय हैं या उनकी डोर पति या रिश्तेदारों के हाथ में ही रह्ती है ! आवश्यकता इस बात की है कि नारी सश्क्तिकरण के लिये चलाये जा रहे अभियान व कानून के परिणामों की समिक्षा हो ! 

मेरा ज़रा भी यह मतलब नहीं है कि हमारे देश की नारी किसी से पीछे है ! वास्तव में कलपना चावला का अन्तरिक्ष में जाना, सुष्मा स्वराज, शीला दिक्षित का संसद में गर्जना, किरन बेदी का दम खम, सानिया मिरज़ा की टेनिस में चुनॊती जॆसे कई उदहरण हैं जो यही सिद्ध करते हैं कि महिलाएं अपने बल बूते अपने आप को बुलंदियों पर स्थापित कर सक्ती है ! ये किसी आरक्ष्ण की मोह्ताज नहीं !

परन्तु हमारे नारी समाज का एक बहुत बडा वर्ग ऎसा है जो कोने में दुबक कर एक शून्य की जिन्दगी जी रहा है ! वह पुरूष प्रधान समाज की रूढिवादी सोच को या तो अपन भाग्य मान बॆठी है य पती की सेवा-पालन को अपना धर्म ! ज़ुल्म होने पर भी शिकायत नहीं करती ! इस नारी को इस शून्य से बाहर कॆसे लाया जाये ? यह एक यक्ष प्रश्न है !

नारी समाज से एक शिकायत जरूर रहेगी ! आज़ादी को नकारात्मक रुप दे कर नारी ने मर्यादायों का उल्लंघन किया है ! स्वतंत्रता की अंधी दॊड में अपने आत्मसम्मान व बॊधिक विकास को दरकिनार कर नारी व्यव्साय की वस्तु बनती जा रही है ! पारिवारिक जीवन में वह बंधना नहीं चाह्ती ! ममत्व से ज्यादा वह निजि ज़िन्दगी को अहमियत देती है ! क्ल्बों मे जा कर नशे में धुत हो कर बांहों मे बांहें डाल कर कामुक डांस करना आज़ादी है, तो शायद यह हमारा दुर्भागय है ! पुरूष की ऎसी नकल कर नारी ने पुरुष की घटिया मानसिकता को जवाब नहीं बल्कि मंजूरी दी है और वात्सल्य के बजाय पुरूष की कामुकता को हवा ही दी है ! ऎसे मे एक तनावग्रस्त समाज की कल्पना की जा सकती है, एक सभ्य समाज की नहीं ! 

नि:सन्देह आज के बदलते परिवेश में नारी "ताड्न की अधिकारी" नहीं ! य़ह भी आवश्यक नहीं कि वह "श्रद्धा" बन कर पुरूष के "निर्जन आंगन" में "पीयूष स्रोत सी" बहती रहे ! वास्तव में नारी को स्वयं को अंधयारे से बाहर लाना होगा ताकि वह किसी आरक्षण विधेयक या हिंसा निरोधक कानून की मोहताज न रहे ! अहम बात ये भी है कि पुरुष को भी नारी की आजादी को स्वीकारना होगा ! नहीं तो कानून बनते जायेंगे और जिसके "आंचल में दूध" है, उसकी "आंखों में पानी" ही रहेगा ! वास्तव में नारी को भी अपने हिस्से की धूप चाहिए, एक आसमां चाहिए जहां वह भी पुरुष की तरह स्वछःन्द विचारों की उडान भर सके !


34 comments:

  1. कल नारी दिवस पर बहुत सारे लेख पढे लेकिन आपका लेख एकदम हट के है बिल्कुल मेरी सोच जैसा, लगा कि मेरे ही विचारो को आपने शब्द दिये हों।
    जबरदस्त सार्थक लेख
    शुभकामनाये

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  2. आपसे असहमति का तो प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता. अभीष्ट को पाने के लिए जहाँ पुरुष मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यकता है, वहीँ महिलाओं के लिए भी कुछ मर्यादाओं का पालन करना अनिवार्य है जैसा कि आपने बहुत सुंदर शब्दों में उल्लेख किया है. " नारी तुम श्रद्धा भी हो " जैसे उदगार पाने के लिए कुछ प्रयास तो अपेक्षित है ही !

    साधुवाद !

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  3. सशक्त आलेख !

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  4. आपकी बात में जो स्पष्टता है उसकी मैं प्रशंसा करूंगा.
    महिला दिवस पर ये पोस्ट बड़ी सार्थक लगी मुझे. बधाई.

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  5. सार्थक और प्रभावी लेख है जगदीशजी .... सभी बातें विचारणीय हैं....

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  6. बहुत ही सार्थक लेखन है,बाली जी.
    सलाम.

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  7. वास्तव में नारी को भी अपने हिस्से की धूप चाहिए, एक आसमां चाहिए जहां वह भी पुरुष की तरह स्वछःन्द विचारों की उडान भर सके ! सुंदर विचार.

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  8. बहुत ही सुन्दर वचन आपकी जितनी तारीफ करू उतनी कम है जी |
    आप मेरे ब्लॉग पे भी देखिये जीना लिंक में निचे दे रहा हु |
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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  9. दरअसल पुरुष नारी की कोई भी स्थान नही दे रहा इसलिए इन सब बातों की ज़रूरत है आज ...

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  10. बहुत उम्दा कोण पकड़ा है आपने.. परन्तु अब चर्चा है ही तो मेरा मत है की समाज मैं हम कभी भी स्त्री और पुरुष की क्षमताओं के अंतर की चर्चाएँ समाप्त नहीं कर सकते..सबसे ज़रूरी पहल है की हमें इनको हलके मैं लेना चाहिए.. किसी काम को स्त्री कर रही या पुरुष,इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए..और तथ्य केवल लिंग भेद के लिए ही नहीं..बल्कि हमारे भारतीय समाज मैं तो कई दूसरी जगहों पे भी लागू होते हैं..मसलन, धर्म और वर्ण व्यवस्था इत्यादि के अंतर मैं..जब हम इन अंतरों से ऊपर उठ जायेंगे तो स्त्री और पुरुष के बीच का भेद मात्र एक मज़ाक की बात रह जायेगी.

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  11. कानून कितने ही बना लिये जायें, पर लगाम मर्द आसानी से छोड्ने वाला नहीं

    आपने नारी जीवन के प्रत्येक पक्ष पर गहनता से विचार किया है ...इस सार्थक लेख के माध्यम से आपने बहुत सारी बातों को स्पष्ट किया है

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  12. सहमत... क्षमा कि देर से यहाँ आ पाई...
    सबसे पहले तो "नारी" का रोना बंद करना होगा...
    चाहे वो उसके खुद के मुंह से हो या दूसरों के... आखिर क्यों रोटी है वो इतना कि वो नारी है...
    उसे उसकी शक्तियों का अहसास दिलाना अब बहुत आवश्यक हो गया है... वर्ना और कोई कुछ नहीं कर सकता...

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  13. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

    कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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  14. बहुत ही अच्छा लेख.

    आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.

    सादर

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  15. अति सार्थक और विचारपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.

    होली के पावन रंगमय पर्व पर आपको और सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ.
    'मनसा वाचा कर्मणा' पर अपना प्रेम बनाये रखियेगा.

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  16. प्रशंसनीय.........लेखन के लिए बधाई।
    ==========================
    देश को नेता लोग करते हैं प्यार बहुत?
    अथवा वे वाक़ई, हैं रंगे सियार बहुत?
    ===========================
    होली मुबारक़ हो। सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

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  17. सशक्त और सार्थक संदेश के लिए आभार...

    नेह और अपनेपन के
    इंद्रधनुषी रंगों से सजी होली
    उमंग और उल्लास का गुलाल
    हमारे जीवनों मे उंडेल दे.

    आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर
    डोरोथी.

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  18. आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-

    रंग के त्यौहार में
    सभी रंगों की हो भरमार
    ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार
    यही दुआ है हमारी भगवान से हर बार।

    आपको और आपके परिवार को होली की खुब सारी शुभकामनाये इसी दुआ के साथ आपके व आपके परिवार के साथ सभी के लिए सुखदायक, मंगलकारी व आन्नददायक हो।

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  19. प्रीति जब प्रथम-प्रथम जगती है,
    दुर्लभ स्वप्न समान रम्य नारी नर को लगती है

    कितनी गौरवमयी घड़ी वह भी नारी जीवन की
    जब अजेय केसरी भूल सुध-बुध समस्त तन-मन की
    पद पर रहता पड़ा, देखता अनिमिष नारी-मुख को,
    क्षण-क्षण रोमाकुलित, भोगता गूढ़ अनिर्वच सुख को!
    यही लग्न है वह जब नारी, जो चाहे, वह पा ले,
    उडुऑ की मेखला, कौमुदी का दुकूल मंगवा ले.
    रंगवा ले उंगलियाँ पदों की ऊषा के जावक से
    सजवा ले आरती पूर्णिमा के विधु के पावक से.

    तपोनिष्ठ नर का संचित ताप और ज्ञान ज्ञानी का,
    मानशील का मान, गर्व गर्वीले, अभिमानी का,
    सब चढ़ जाते भेंट, सहज ही प्रमदा के चरणों पर
    कुछ भी बचा नहीं पाटा नारी से, उद्वेलित नर.

    किन्तु, हाय, यह उद्वेलन भी कितना मायामय है !
    उठता धधक सहज जिस आतुरता से पुरुष ह्रदय है,
    उस आतुरता से न ज्वार आता नारी के मन में
    रखा चाहती वह समेटकर सागर को बंधन में.

    किन्तु बन्ध को तोड़ ज्वार नारी में जब जगता है
    तब तक नर का प्रेम शिथिल, प्रशमित होने लगता है.
    पुरुष चूमता हमें, अर्ध-निद्रा में हमको पाकर,
    पर, हो जाता विमिख प्रेम के जग में हमें जगाकर.

    और जगी रमणी प्राणों में लिए प्रेम की ज्वाला,
    पंथ जोहती हुई पिरोती बैठ अश्रु की माला.


    नारी अगर अपने को पहचान ले तो क्या नहीं कर सकती!
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  20. प्रभाव छोड़ने में कामयाब एक अच्छी पोस्ट ! शुभकामनायें आपको !!

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  21. प्रभावशाली एवं विचारणीय लेख ..वास्तव में नारियों को समाज में अपने आप को स्थापित करने की स्वयं ही पहल करनी होगी ..साधुवाद !!!

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  22. होली की बहुत बहुत रंगों भरी शुभकामनाएं ..

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  23. @अब तो लेखक भी नारी की व्यथा लिखते लिखते थक गये हैं ....

    हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी ....
    रंगोत्सव पर आपको शुभकामनायें !

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  24. sarthak prabhavi lekh....aapse sahmat hun. happy holi :)

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  25. सार्थक लेखन...
    सादर.

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  26. पुरुष प्रधान समाज में आज भी औरत को वो स्थान नहीं मिल पाया जिसकी वो हक़दार है .
    मंथन योग्य प्रस्तुत .

    सादर आमंत्रित हैं --> भावाभिव्यक्ति

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  27. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.

    कृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen"पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.

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