Sunday, 7 April 2019

घर

कोई दीवार चिनता है
कोई छत बींदता है
रेत, बजरी, लक्कड़ी,
पत्थर, मिल जाए
तो मकान बनता है
पर घर नहीं बनता है

स्नेह की हो नींव
प्यार की ईंटें
संवेदनाओं की गोंद
रिश्ते का हो ताना-बाना
तो घर बनता है

मा की हो लोरियां
नाना-नानी की कहानियां
दादी का दुलार
दादा जी से हो ठिठोली
तो घर बनता है

पिता जी की डांट-फटकार
मां का आंचल
नौक झौंक में अपनापन
बच्चॊ के साथ पलते हो संस्कार
तो घर बनता है

नहीं सिकुडति हो भौंएं मेहमान आने पर
बूढ़े मा बाप की हो कदर
बुज़ुर्गों का आशीर्वाद
बातों के साथ बनता हो चरित्र
तो घर बनता है

ठनती हो सास-बहू की
पर फ़िर हो बनती
अटूट प्रेम का धागा
झगड़ते हो भाई-बहन
पर फिर मिलते हो गले
तो घर बनता है

उंची रंगदार इमारतें
दीवरों पर नक्ककाशी
नरम गलीचे, महंगे बर्तन,
गद्देदार कुर्सियां
इनसे मकान बनता है
मकान बनता है
पर घर नहीं बनता है
घर की चीज़ों से नहीं
घरवालों से घर बनता है   

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