Sunday, 7 April 2019

फ़ैसला

कहां इनाम का अब हुनर से फैसला होता है
बल्कि हुनर का अब इनाम से फैसला होता है
मक्कारों के फरेब से चलती है अब ये दुनिया
ज़हीनों के साथ अब धोखे से फैसला होता है
साज़िशों से ही जलते-बुझते हैं ज़िंदगी के दीए
कहां हवाओं की मर्ज़ी से अब फैसला होता है
मुफ़लिस ही रखते हैं इंसानी रिश्तों को ज़िंदा
पैसे वालों का तो बस पैसों से फैसला होता है
अपने ही अश्कों से मिलता है दिल को करार
कहां मुंसिफ़ से अब वफ़ा का फ़ैसला होता है
कौन सुनता है अकेले सच्च की आवाज़ को
काफिले के शोर से आयद हर फैसला होता है
परों से ही कहां सदा हो पाती है ऊंची परवाज़
जुर्रत से भी उड़ान का अहम फैसला होता है
न कर अब तू फिक्र और फैसले की 'बाली'
तेरी ज़िन्दगी का फैसला तेरे फैसले से होता है

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