समाज में तीन तरह के लोग होते हैं- ब्यवस्था के साथ चलने वाले, ब्यवस्था से हट कर चलने वाले, ब्यवस्था के विरुद्ध चलने वाले ! मैं चौथी किस्म का आदमी हूं, रहता ज़माने मै हूं पर ज़माने को बदलने की चेष्ठा रखता हूं ! क्योंकि :
ज़माने ने गिराया, तो मैने संभलना सीखा
ज़माने ने रुलाया, तो मैने हंसना सीखा
ज़माने ने फ़िसलाया तो मैने चलना सीखा
इसी तरह ज़माने से ही मैने ज़माने से लड़ना सीखा !
बहुत खूब
ReplyDeleteऐसे लोग बिरले ही मिलते है
बेहतरीन !
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कल 06/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Bahut Badhiya
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत खूब ..जो ज़माने से लड़ा वही सफल हुआ ..
ReplyDeleteaise hi logon ne jamane ko badal dala hai .badhai
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति.
ReplyDeleteशुभ कामनाएं ..जगदीश जी .. सार्थक भावाभिव्यक्ति ...यशवंत जी बहुत ही सुन्दर मनभावन लेख एवं कविताओं के संसार से परिचित कराने के लिए अपार अभिनन्दन...
ReplyDeleteसंगीता स्वरुप जी ..इतने सुन्दर साहित्यिक लिंक प्रदान करने के लिए कोटि कोटि अभिनन्दन...!!!
सादर !!!!
वाह, बहुत खूब।चौथे तरह के लोग मुझे भी पसंद हैं।
ReplyDeletebahut sahi
ReplyDeletewaah bali ji badhiya hai
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteसभी आपके साथ हैं.
ReplyDeleteशुभ कामनाएं .
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