डरता है कौन य़हां खुदा से
हमें तो आदमी से डर लगता है
कल तक फ़लसफ़ा पढाता था जो चिराग जलाने का
आज देखा जो घर उस का,
अंधेरे में बहुत रहता है वो आदमी
बहुत बडा है ये जहां
मालूम किसे कौन रहता है कहां
मकानों से मकान बना लिए बहुत
पर बढ़ा लिए घरों से घरों का फासले भी बहुत
क्या ऐसा ही होता है ये आदमी ?
बंगला आलिशान, गाडी लंबी, पौशाक भी शफ़्फ़ाक
बातें भी करता है भरी-भरी, ऊंची सी
लगता है किसी भरे-पूरे, खाते-पीते घर का
पर देखा जब आज जरा गौर से,
बिलकुल खाली लगता है ये आदमी
बडा अजब है, खुदा, तेरा शहर ये दुनियां
दिन में फ़रिशते से फ़िरते है तेरे ये आदमी
ज़रा डूबने दो सूरज ढलने दो जरा रात
फिर तू भी देख लेना
बगल में खंजर ले नमोदार होगा तेरा ये आदमी
काक को वो कोयल कहे, गधे को मान ले घोडा
हम समझाएं बहुत पर समझे बहुत थोडा
नाम नयनसुख पर आंख से हो लिया अंधा
खुद की धुली नहीं, चादर औरों की धोने चला
क्या खूब है ये आदमी
जो भी है, जैसा भी है पर
लिखता है सचमुच सीधा
कहता भी है डंके की चोट पर सीधा
देख तो जरा गौर से ’बाली’ कैसा है आदमी
अरे चल गया पता हमें, वो तो है ही नहीं आदमी !
हमें तो आदमी से डर लगता है
कल तक फ़लसफ़ा पढाता था जो चिराग जलाने का
आज देखा जो घर उस का,
अंधेरे में बहुत रहता है वो आदमी
बहुत बडा है ये जहां
मालूम किसे कौन रहता है कहां
मकानों से मकान बना लिए बहुत
पर बढ़ा लिए घरों से घरों का फासले भी बहुत
क्या ऐसा ही होता है ये आदमी ?
बंगला आलिशान, गाडी लंबी, पौशाक भी शफ़्फ़ाक
बातें भी करता है भरी-भरी, ऊंची सी
लगता है किसी भरे-पूरे, खाते-पीते घर का
पर देखा जब आज जरा गौर से,
बिलकुल खाली लगता है ये आदमी
बडा अजब है, खुदा, तेरा शहर ये दुनियां
दिन में फ़रिशते से फ़िरते है तेरे ये आदमी
ज़रा डूबने दो सूरज ढलने दो जरा रात
फिर तू भी देख लेना
बगल में खंजर ले नमोदार होगा तेरा ये आदमी
काक को वो कोयल कहे, गधे को मान ले घोडा
हम समझाएं बहुत पर समझे बहुत थोडा
नाम नयनसुख पर आंख से हो लिया अंधा
खुद की धुली नहीं, चादर औरों की धोने चला
क्या खूब है ये आदमी
जो भी है, जैसा भी है पर
लिखता है सचमुच सीधा
कहता भी है डंके की चोट पर सीधा
देख तो जरा गौर से ’बाली’ कैसा है आदमी
अरे चल गया पता हमें, वो तो है ही नहीं आदमी !